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श॒ग्धि वाज॑स्य सुभग प्र॒जाव॒तोऽग्ने॑ बृह॒तो अ॑ध्व॒रे। सं रा॒या भूय॑सा सृज मयो॒भुना॒ तुवि॑द्युम्न॒ यश॑स्वता॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śagdhi vājasya subhaga prajāvato gne bṛhato adhvare | saṁ rāyā bhūyasā sṛja mayobhunā tuvidyumna yaśasvatā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श॒ग्धि। वाज॑स्य। सु॒ऽभ॒ग॒। प्र॒जाऽव॑तः। अग्ने॑। बृ॒ह॒तः। अ॒ध्व॒रे। सम्। रा॒या। भूय॑सा। सृ॒ज॒। म॒यः॒ऽभुना॑। तुवि॑ऽद्युम्न। यश॑स्वता॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:16» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:16» मन्त्र:6 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (तुविद्युम्न) बहुत धन और कीर्त्ति से युक्त (सुभग) उत्तम ऐश्वर्य्यधारी (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! आप (प्रजावतः) प्रशंसा करने योग्य प्रजायुक्त (बृहतः) श्रेष्ठ (वाजस्य) अन्न आदि वा विज्ञान के (अध्वरे) अहिंसा आदि स्वरूप व्यवहार में (शग्धि) सामर्थ्य स्वरूप हो उस (भूयसा) बड़े (मयोभुना) सुखकारक (यशस्वता) अधिक यश सहित (राया) धन से हमको (संसृज) संयुक्त कीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के सङ्ग से यह प्रार्थना करें कि हे विद्वानों ! हम लोगों को विद्या विनय और धन सुखों से संयुक्त करो ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वानों के गुणों के वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति है, यह जानना चाहिये ॥ यह सोलहवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे तुविद्युम्न सुभगाऽग्ने त्वं प्रजावतो बृहतो वाजस्याध्वरे शग्धि तेन भूयसा मयोभुना यशस्वता राया संसृज अस्मान् संसर्जय ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शग्धि) शक्नुहि (वाजस्य) अन्नादेर्विज्ञानस्य वा (सुभग) प्राप्तोत्तमैश्वर्य्य (प्रजावतः) प्रशस्ताः प्रजा विद्यन्ते यस्मिंस्तस्य (अग्ने) विद्वन् (बृहतः) महतः (अध्वरे) अहिंसादिलक्षणे व्यवहारे (सम्) सम्यक् (राया) धनेन (भूयसा) बहुना (सृज) (मयोभुना) यो मयांसि सुखानि भावयति तेन (तुविद्युम्न) बहुधनकीर्त्तियुक्त (यशस्वता) बहुयशो विद्यते यस्मिंस्तेन ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्विदुषां सङ्गेनेयम्प्रार्थना कार्य्या। हे विद्वांसोऽस्मान् विद्याविनयनधनसुखैः सह संयोजयतेति ॥६॥ अत्राऽग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षोडशं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी विद्वानाच्या संगतीने ही प्रार्थना करावी की हे विद्वानांनो! आम्हाला विद्या, विनय व धन या सुखांनी युक्त करा. ॥ ६ ॥